मनरेगा के बजट में 18 प्रतिशत की कटौती के बावजूद चिंता की जरूरत नहीं, सरकार के बयान से दूर हो जाएगी कन्फ्यूजन
1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए संसद में देश का बजट पेश किया. वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पेश किए गए बजट में सरकार ने मनरेगा योजना के लिए 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो वित्त वर्ष 2022-23 के 73,000 करोड़ रुपये के बजट से 18 प्रतिशत कम है.
मनरेगा के बजट में 18 प्रतिशत की कटौती के बावजूद चिंता की जरूरत नहीं, सरकार के बयान से दूर हो जाएगी कन्फ्यूजन (PTI)
मनरेगा के बजट में 18 प्रतिशत की कटौती के बावजूद चिंता की जरूरत नहीं, सरकार के बयान से दूर हो जाएगी कन्फ्यूजन (PTI)
1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए संसद में देश का बजट पेश किया. वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पेश किए गए बजट में सरकार ने मनरेगा योजना के लिए 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो वित्त वर्ष 2022-23 के 73,000 करोड़ रुपये के बजट से 18 प्रतिशत कम है. बजट में मनरेगा योजना के लिए आवंटन में कमी को देखते हुए मीडिया रिपोर्ट्स में चिंता व्यक्त की गई थी. रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ये ग्रामीण रोजगार योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को प्रभावित कर सकता है, जिसका उद्देश्य गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना देना है.
मांग आधारित योजना है महात्मा गांधी नरेगा
पूरे मामले में मीडिया की चिंता पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बड़ा बयान जारी किया है. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा कि मीडिया की चिंता सच्चाई से कोसों दूर है. मंत्रालय ने कहा कि महात्मा गांधी नरेगा एक मांग आधारित योजना है. रोजगार की मांग करने वाले किसी भी परिवार को योजना के अनुसार एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का अकुशल शारीरिक श्रम प्रदान किया जाता है.
परिवारों को काम की मांग के बदले मजदूरी रोजगार की पेशकश
चालू वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान कुल 99.81 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को काम की मांग के बदले में मजदूरी रोजगार की पेशकश की गई है. योजना के अंतर्गत अगर किसी आवेदक से रोजगार आवेदन की प्राप्ति के पंद्रह दिनों के अंदर ऐसा रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है तो वह दैनिक बेरोजगारी भत्ता का हकदार होता है.
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केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निधि जारी करना एक ऐसी प्रक्रिया है जो लगातार चलती रहती है.
बीते सालों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी की गई निधि
वित्त वर्ष | बजट (करोड़ रुपये में) | संशोधित अनुमान (करोड़ रुपये में) | जारी की गई निधि |
2014-15 | 34000.00 | 33000.00 | 32977.43 |
2015-16 | 34699.00 | 37345.95 | 37340.72 |
2016-17 | 38500.00 | 48220.26 | 48219.05 |
2017-18 | 48000.00 | 55167.06 | 55166.06 |
2018-19 | 55000.00 | 61830.09 | 61829.55 |
2019-20 | 60000.00 | 71001.81 | 71687.71 |
2020-21 | 61500.00 | 111500.00 | 111170.86 |
2021-22 | 73000.00 | 98000.00 | 98467.85 |
वित्त वर्ष 2019-20 में बजट अनुमान 60,000 करोड़ रुपये था, जिसे बढ़ाकर संशोधित बजट अनुमान कर 71,001 करोड़ रुपये कर दिया गया, वित्त वर्ष 2020-21 का बजट अनुमान 61,500 करोड़ रुपये था, जो बढ़ाकर संशोधित बजट अनुमान 1,11,500 करोड़ रुपये कर दिया गया और वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट अनुमान 73,000 करोड़ रुपये था जिसे बढ़ाकर संशोधित बजट अनुमान 98,000 करोड़ रुपये कर दिया गया.
बीते साल की निधियों का अगले साल की निधि की जरूरत पर नहीं पड़ता प्रभाव
इस प्रकार ये देखा जा सकता है कि राज्यों को जारी की गई वास्तविक निधि, बजट की राशि से बहुत ज्यादा रही है. यहां तक कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में भी बजट अनुमान 73,000 करोड़ रुपये है, जिसे संशोधित कर 89,400 करोड़ रुपये कर दिया गया है. जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि पिछले साल जारी की गई निधियों का अगले साल के लिए निधियों की जरूरत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
जब कभी अतिरिक्त निधि की आवश्यकता होती है, वित्त मंत्रालय से उन निधि को उपलब्ध कराने का अनुरोध किया जाता है। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों के लिए लागू अधिनियम और दिशानिर्देशों के प्रावधानों के अनुसार, भारत सरकार योजना का उचित कार्यान्वयन करने के लिए मजदूरी और सामग्री का भुगतान करने के लिए निधि जारी करने के लिए प्रतिबद्ध है।
03:17 PM IST